Friday, December 6, 2013
Hinduism
Hinduism
Region | Country | Total Population (2011 est) | Hindu % of population | Hindu totalZ |
---|---|---|---|---|
South Asia | Afghanistan | 31,889,923 | 0.4%[5][6] | 127,560 |
Europe | Andorra | 84,082 | 0.4%[7] | 336 |
Caribbean | Antigua | 86,754 | 0.1%[7] | 87 |
South America | Argentina | 40,301,927 | 0.01%[8] | 4,030 |
Oceania | Australia | 20,434,176 | 1.28%[9] | 276,000 |
Central Europe | Austria | 8,199,783 | 0.1% (approx)[10] | 8,200 |
Middle East | Bahrain | 708,573 | 6.25%[11] | 44,286 |
South Asia | Bangladesh | 150,448,339 | 9.2%[12] – 12.4%[13][14] | 13,841,247 – 18,665,594 |
Western Europe | Belgium | 10,392,226 | 0.06%[15] | 6,235 |
Central America | Belize | 294,385 | 2.3%[16] | 6,771 |
South Asia | Bhutan | 2,327,849 | 2%[17] – 25%[18][19] | 46,557 – 581,962 |
Southern Africa | Botswana | 1,815,508 | 0.17%[20] | 3,086 |
South America | Brazil | 190,010,647 | 0.0016%[21] | 3,040 |
Southeast Asia | Brunei | 374,577 | 0.035%[22] | 131 |
West Africa | Burkina Faso | 14,326,203 | 0.001% | 150 |
Central Africa | Burundi | 8,390,505 | 0.1%[23][24] | 8,391 |
Southeast Asia | Cambodia | 13,995,904 | 0.3%[25][26] | 41,988 |
North America | Canada | 33,390,141 | 1.6%[27][28] | 497,200 |
South America | Colombia | 44,379,598 | 0.02%[29] | 8,876 |
East Africa | Comoros | 711,417 | 0.1%(approx) | 711 |
Central Africa | Congo (Kinshasa) | 65,751,512 | 0.18%[30] | 118,353 |
Balkans | Croatia | 4,493,312 | 0.01% (approx)[31] | 449 |
North America | Cuba | 11,394,043 | 0.21%[32] | 23,927 |
West Africa | Côte d'Ivoire | 18,013,409 | 0.1%[33][34] | 18,013 |
Western Europe | Denmark | 5,468,120 | 0.1%[35][36] | 5,468 |
East Africa | Djibouti | 496,374 | 0.02%[37] | 99 |
Caribbean | Dominica | 72,386 | 0.2%[38] | 145 |
East Africa | Eritrea | 4,906,585 | 0.1% (approx)[39] | 4,907 |
Oceania | Fiji | 918,675 | 30%[40] – 33%[41][42] | 275,603 – 303,163 |
Western Europe | Finland | 5,238,460 | 0.01%[43] | 524 |
Western Europe | France | 63,718,187 | 0.1%[44][45] | 63,718 |
Middle East | Georgia | 4,646,003 | 0.01% (approx)[46] | 465 |
Western Europe | Germany | 82,400,996 | 0.119%[47] | 98,057 |
West Africa | Ghana | 22,931,299 | 0.05% (approx)[48] | 11,466 |
Caribbean | Grenada | 89,971 | 0.7%[49] | 630 |
South America | Guyana | 769,095 | 28.3%[50][51] – 33%[52][53][54] | 217,654 – 253,801 |
Central Europe | Hungary | 9,956,108 | 0.02% | 1,767[55] |
South Asia | India | 1,241,451,960 | 80.2%[56][57][58] | 1,010,023,827 |
Southeast Asia | Indonesia | 234,693,997 | 2%[59][60][61] | 4,693,880 |
Middle East | Iran | 65,397,521 | 0.02% (approx) | 13,079 |
Western Europe | Ireland | 4,588,252 | 0.23%[62] | 10,688 |
Middle East | Israel | 6,426,679 | 0.1% (approx)[63] | 6,427 |
Western Europe | Italy | 60,418,000 | 0.2% (approx)[64] | 108,950 |
Caribbean | Jamaica | 2,780,132 | 0.06%[65] | 1,668 |
East Asia | Japan | 127,433,494 | 0.004% (approx) | 5,097 |
East Africa | Kenya | 36,913,721 | 1%[66] | 369,137 |
East Asia | Korea, South | 49,044,790 | 0.015% (approx) | 12,452 |
Middle East | Kuwait | 2,505,559 | 12%[67] | 300,667 |
Eastern Europe | Latvia | 2,259,810 | 0.006%[68] | 136 |
Middle East | Lebanon | 3,925,502 | 0.1% (approx)[69] | 3,926 |
Southern Africa | Lesotho | 2,125,262 | 0.1% (approx)[70][71] | 2,125 |
West Africa | Liberia | 3,195,931 | 0.1% (approx)[72] | 3,196 |
North Africa | Libya | 6,036,914 | 0.1%[73][74] | 6,037 |
Western Europe | Luxembourg | 480,222 | 0.07% (approx)[75] | 336 |
Southern Africa | Madagascar | 19,448,815 | 0.1%[76][77] | 19,449 |
Southern Africa | Malawi | 13,603,181 | 0.02%[78] – 0.2%[79] | 2,721 – 2,726 |
Southeast Asia | Malaysia | 28,401,017 | 7%[80][81] | 1,630,000 |
South Asia | Maldives | 369,031 | 0.01%[82] | 37 |
Southern Africa | Mauritius | 1,250,882 | 48%[83] – 50%[84] | 600,423 – 625,441 |
Eastern Europe | Moldova | 4,328,816 | 0.01% (approx)[85] | 433 |
Southern Africa | Mozambique | 20,905,585 | 0.05%[86] – 0.2%[87] | 10,453 – 41,811 |
Southeast Asia | Myanmar | 47,963,012 | 1.5%[88] | 893,000 |
South Asia | Nepal | 28,901,790 | 80.6%[89] – 81%[90][91] | 23,294,843 – 23,410,450 |
Western Europe | Netherlands | 16,570,613 | 0.58%[92] – 1.20%[93] | 96,110 – 200,000 |
Oceania | New Zealand | 4,115,771 | 1%[94] | 41,158 |
Western Europe | Norway | 4,627,926 | 0.5% | 23,140 |
Middle East | Oman | 3,204,897 | 3%[95] – 5.7%[96] | 96,147 – 182,679 |
South Asia | Pakistan | 164,741,924 | 1.5%[97] – 3.3%[98] | 5,900,000 – 9,000,000 |
Central America | Panama | 3,242,173 | 0.3%[99][100] | 9,726 |
Southeast Asia | Philippines | 98,215,000[101] | 2% (approx) | 2,000,000 |
Western Europe | Portugal | 10,642,836 | 0.07% | 7,396 |
Caribbean | Puerto Rico | 3,944,259 | 0.09%[102] | 3,550 |
Middle East | Qatar | 907,229 | 7.2%[103][104] | 65,320 |
East Africa | Réunion | 827,000 | 6.7%[105] | 55,409 |
Eastern Europe | Russia | 141,377,752 | 0.043%[106][107] | 60,792 |
Middle East | Saudi Arabia | 27,601,038 | 0.6%[108] – 1.1%[109] | 165,606 – 303,611 |
East Africa | Seychelles | 81,895 | 2% | 1,638 |
West Africa | Sierra Leone | 6,144,562 | 0.04%[110] – 0.1%[111] | 2,458 – 6,145 |
Southeast Asia | Singapore | 4,553,009 | 5.1%[112][113] | 262,120 |
Central Europe | Slovakia | 5,447,502 | 0.1% (approx) | 5,448 |
Central Europe | Slovenia | 2,009,245 | 0.025% (approx) | 500 |
Southern Africa | South Africa | 49,991,300 | 1.9%[114][115] | 959,000 |
South Asia | Sri Lanka | 20,926,315 | 7.1%[116] – 12.1%[117] | 1,485,768 – 3,138,947 |
South America | Suriname | 470,784 | 20%[118] – 27.4%[119] | 94,157 – 128,995 |
Southern Africa | Swaziland | 1,133,066 | 0.15%[120] – 0.2%[121] | 1,700 – 2,266 |
Western Europe | Sweden | 9,031,088 | 0.078% – 0.12%[122] | 7,044 – 10,837 |
Western Europe | Switzerland | 7,554,661 | 0.38%[123][124] | 28,708 |
East Africa | Tanzania | 39,384,223 | 0.9%[125][126] | 354,458 |
Southeast Asia | Thailand | 65,068,149 | 0.1%[127] | 2,928 |
Caribbean | Trinidad and Tobago | 1,056,608 | 22.5%[128][129][130] | 237,737 |
East Africa | Uganda | 30,262,610 | 0.2%[131] – 0.8%[132] | 60,525 – 242,101 |
Middle East | United Arab Emirates | 4,444,011 | 21.25%[133] | 944,352 |
Western Europe | United Kingdom | 60,776,238 | 1.7%[134][135] | 832,000 |
North America | United States | 307,006,550 | 0.4%[136][137] | 1,204,560 |
Central Asia | Uzbekistan | 27,780,059 | 0.01% (approx) | 2,778 |
Southeast Asia | Vietnam | 85,262,356 | 0.059%[138] | 50,305 |
Middle East | Yemen | 22,230,531 | 0.7%[139] | 155,614 |
Southern Africa | Zambia | 11,477,447 | 0.14%[140][141] | 16,068 |
Southern Africa | Zimbabwe | 12,311,143 | 0.1%[142] | 123,111 |
Total | 7,000,000,000 | 15.48 | 1,083,800,358–1,101,518,322 |
By region
These percentages were calculated by using the above numbers. The first percentage, 4th column, is the percentage of population that is Hindu in a region (Hindus in the region * 100/total population of the region). The last column shows the Hindu percentage compared to the total Hindu population of the world (Hindus in the region * 100/total Hindu population of the world).(Note: Egypt, Sudan, and other Arab Maghreb countries are counted as part of North Africa, not Middle East).
Region | Total Population | Hindus | % of Hindus | % of Hindu total |
---|---|---|---|---|
Central Africa | 93,121,055 | 0 | 0% | 0% |
East Africa | 193,741,900 | 667,694 | 0.345% | 0.071% |
North Africa | 202,151,323 | 5,765 | 0.003% | 0.001% |
Southern Africa | 137,092,019 | 1,269,844 | 0.926% | 0.135% |
West Africa | 268,997,245 | 70,402 | 0.026% | 0.007% |
Total | 885,103,542 | 2,013,705 | 1.228% | 0.213% |
Region | Total Population | Hindus | % of Hindus | % of Hindu total |
---|---|---|---|---|
Central Asia | 92,019,166 | 149,644 | 0.163% | 0.016% |
East Asia | 1,527,960,261 | 130,631 | 0.009% | 0.014% |
Middle East | 274,775,527 | 792,872 | 0.289% | 0.084% |
South Asia | 1,437,326,682 | 1,006,888,651 | 70.05% | 98.475% |
Southeast Asia | 571,337,070 | 6,386,614 | 1.118% | 0.677% |
Total | 3,903,418,706 | 1,014,348,412 | 26.01% | 99.266% |
Region | Total Population | Hindus | % of Hindus | % of Hindu total |
---|---|---|---|---|
Balkans | 65,407,609 | 0 | 0% | 0% |
Central Europe | 74,510,241 | 163 | 0% | 0% |
Eastern Europe | 212,821,296 | 717,101 | 0.337% | 0.076% |
Western Europe | 375,832,557 | 1,313,640 | 0.348% | 0.138% |
Total | 728,571,703 | 2,030,904 | 0.278% | 0.214% |
Region | Total Population | Hindus | % of Hindus | % of Hindu total |
---|---|---|---|---|
Caribbean | 24,898,266 | 279,515 | 1.123% | 0.030% |
Central America | 41,135,205 | 5,833 | 0.014% | 0.006% |
North America | 446,088,748 | 5,806,720 | 1.3015% | 0.191% |
South America | 371,075,531 | 389,869 | 0.105% | 0.041% |
Total | 883,197,750 | 6,481,937 | 0.281% | 0.263% |
Region | Total Population | Hindus | % of Hindus | % of Hindu total |
---|---|---|---|---|
Oceania | 30,564,520 | 411,907 | 1.348% | 0.044% |
Total | 30,564,520 | 411,907 | 1.348% | 0.044% |
विद्यालय की पहचान है गांधी टोपी
विद्यालय की पहचान है गांधी टोपी
महात्मा गांधी का अनुयायी होने का दावा करने वाले नेताओं ने भले ही 'गांधी
टोपी' को भुला दिया हो, मगर मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक ऐसा
विद्यालय है जहां के छात्र नियमित गांधी टोपी लगाकर ही आते हैं।
बात आजादी की लड़ाई के दौर की है, जब महात्मा गांधी नरसिंहपुर जिले के सिंहपुर बडा के माध्यमिक विद्यालय में आए थे। उनके आने का इस विद्यालय पर ऐसा असर पड़ा कि यहां के छात्रों ने गांधी टोपी को ही अपनी ड्रेस का हिस्सा बना लिया। वह सिलसिला आज भी जारी है और इस विद्यालय का हर छात्र सफेद कमीज, नीली पैंट के साथ सिर पर गांधी टोपी लगाकर आना नहीं भूलता।
शासकीय उत्तर बुनियादी माध्यमिक शाला में पहली से आठवी तक की कक्षाओं की पढ़ाई होती है। विद्यालय का हर छात्र नियमित तौर पर गांधी टोपी लगाकर आता है, क्योंकि टोपी के बगैर वह शाला में प्रवेश ही नहीं कर सकता है।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका पुष्पलता शर्मा ने बताया कि टोपी पहनना यहां की परंपरा बन गई है। नियमित रूप से टोपी लगाने से बच्चों में अनुशासन आता है और वे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं।
विद्यालय के छात्र दुर्गेश उइके का कहना है कि उन्होंने गांधी को तो नहीं देखा है मगर गांधी टोपी लगाने से उन्हें उनकी याद जरूर आ जाती है। वे चाहते हैं कि उनका आचरण भी गांधी जैसा हो और वे देश के लिए कुछ कर सकें।
छात्र रसीद खान कहते हैं कि गांधी टोपी लगाकर उन्हें फक्र महसूस होता है। यह टोपी उन्हें नई उर्जा देती है, वे अपना कोई भी जरुरी काम भूल जाएं मगर विद्यालय आते वक्त टोपी लगाना नहीं भूलते।
महात्मा गांधी के आने के बाद से शुरू हुई विद्यार्थियों के गांधी टोपी लगाने की परंपरा आज भी कायम है और उम्मीद करते हैं कि यह आगे भी जारी रहे, ताकि गांधी के अनुयायी होने का दावा करने वाले भी कुछ सीख लें।
बात आजादी की लड़ाई के दौर की है, जब महात्मा गांधी नरसिंहपुर जिले के सिंहपुर बडा के माध्यमिक विद्यालय में आए थे। उनके आने का इस विद्यालय पर ऐसा असर पड़ा कि यहां के छात्रों ने गांधी टोपी को ही अपनी ड्रेस का हिस्सा बना लिया। वह सिलसिला आज भी जारी है और इस विद्यालय का हर छात्र सफेद कमीज, नीली पैंट के साथ सिर पर गांधी टोपी लगाकर आना नहीं भूलता।
शासकीय उत्तर बुनियादी माध्यमिक शाला में पहली से आठवी तक की कक्षाओं की पढ़ाई होती है। विद्यालय का हर छात्र नियमित तौर पर गांधी टोपी लगाकर आता है, क्योंकि टोपी के बगैर वह शाला में प्रवेश ही नहीं कर सकता है।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका पुष्पलता शर्मा ने बताया कि टोपी पहनना यहां की परंपरा बन गई है। नियमित रूप से टोपी लगाने से बच्चों में अनुशासन आता है और वे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं।
विद्यालय के छात्र दुर्गेश उइके का कहना है कि उन्होंने गांधी को तो नहीं देखा है मगर गांधी टोपी लगाने से उन्हें उनकी याद जरूर आ जाती है। वे चाहते हैं कि उनका आचरण भी गांधी जैसा हो और वे देश के लिए कुछ कर सकें।
छात्र रसीद खान कहते हैं कि गांधी टोपी लगाकर उन्हें फक्र महसूस होता है। यह टोपी उन्हें नई उर्जा देती है, वे अपना कोई भी जरुरी काम भूल जाएं मगर विद्यालय आते वक्त टोपी लगाना नहीं भूलते।
महात्मा गांधी के आने के बाद से शुरू हुई विद्यार्थियों के गांधी टोपी लगाने की परंपरा आज भी कायम है और उम्मीद करते हैं कि यह आगे भी जारी रहे, ताकि गांधी के अनुयायी होने का दावा करने वाले भी कुछ सीख लें।
शिक्षा की अवधारणा ने बदला शिक्षक का महत्व
शिक्षा की अवधारणा ने बदला शिक्षक का महत्व
नई दिल्ली: 5 सितम्बर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के
जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है।
शिक्षक कौन होता है और उसका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? इस प्रश्न का
उत्तर जानने के लिए पहले यह जानना आवश्यक है कि शिक्षा क्या है?
आज माता-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले ही स्कूल में उसका रजिस्ट्रेशन करा देते हैं, स्कूल के अलावा छोटे-छोटे बच्चों को कोचिंग भेजा जाता है। जहाँ पहले माता-पिता पूरे साल में एक बार भी अध्यापक से नहीं मिलते थे, वहीं अब वे साल में 10 बार स्कूल जाकर उसकी पूरी रिपोर्ट लेते हैं। इस सबके अलावा प्रतिवर्ष शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिये नयी-नयी योजनायें आती हैं।
वास्तव में शिक्षा है क्या?
क्या बच्चों की स्कूली पढ़ाई ही शिक्षा है या इससे कुछ अधिक है? बच्चे जो घर में सीखते हैं, दोस्तों से सीखते हैं, अपने अनुभव से सीखते हैं, वह सब क्या है?
जब शिशु पैदा होता है तो उसके पास केवल प्रकृति प्रदत्त ज्ञान होता है, वह ज्ञान जो प्रकृति के हर प्राणी के पास होता है। जो बात उसे बाकी जीवों से अलग करती है, वह है सीखने की अपार क्षमता। इस क्षमता के कारण वह पैदा होने के बाद से प्रतिदिन कुछ नया सीखता है। इस सीखने का पहला चरण शारीरिक ज्ञान है। इसके अंतर्गत वह अपने शरीर और उसकी आवश्यकताओं जैसे शौच, भूख, प्यास, दर्द, नींद आदि से अवगत होता है। दूसरे चरण में वह भावनात्मक आवश्यकताओं को समझता है जैसे स्नेह, रिश्ते, स्पर्श आदि।
तीसरे चरण में सामाजिक आवश्यकताओं को जानता है और चौथा चरण स्वयं से साक्षात्कार का है। शैशव काल से लेकर मृत्युपर्यंत, इन चारों चरणों में व्यक्ति जो भी सीखता है वह शिक्षा है। चाणक्य हों या कबीर, प्लेटो हों या अरस्तु, नेहरु हों या महात्मा गाँधी, लगभग सभी विचारकों ने शिक्षा के क्षेत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया और इसकी बेहतरी के लिए प्रयास भी किया।
गुरु और शिक्षक
शिक्षा से ही फिर अन्य दो शब्दों को प्रादुर्भाव हुआ, शिक्षक और शिक्षार्थी। शिक्षा देने वाला शिक्षक और शिक्षा ग्रहण करने वाला शिक्षार्थी। शिक्षा के मानव जीवन में महत्त्व के कारण ही शिक्षक का स्थान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया। जिस प्रकार मानव सभ्यता का प्रारंभ भारत से हुआ उसी प्रकार शिक्षा पर चिंतन भी भारत से ही शुरू हुआ। गुरुकुल की अवधारणा इसका पहला चरण था। आदि काल में शिक्षा का क्षेत्र व्यापक था, पर उसका अधिकार सीमित था। यह अपने विकसित रूप में सबको उपलब्ध नहीं थी। चुनिन्दा जातियां और कुल ही इसके अधिकारी थे।
लेकिन शिक्षा का क्षेत्र व्यापक होने के कारण शिष्य को पाकशास्त्र, गायन, नृत्य, शास्त्र, वेद, नीति, अस्त्र-शस्त्र के अलावा लकड़ी काटना तक सिखाया जाता था, भले ही वह राजकुमार ही क्यों न हो। माता-पिता अपनी संतानों को गुरु के सुपुर्द कर देते थे और शिक्षा समाप्त होने के बाद ही वे अपने घर को प्रस्थान करते थे।
गुरुकुल में निवास के दौरान छात्रों किसी भी सूरत में परिवार से कोई संपर्क नहीं रहता था और वे पूर्णतया गुरु के ही संरक्षण में रहते थे। इसी कारण वे पूरी तरह गुरु निष्ठ होते थे और उस समय गुरु का आदर ईश्वर के समान ही था। गुरु भी अपने आचरण में इस सम्मान का पात्र बनने का पूरा प्रयास करते थे। उनके लिए शिष्य का हित ही सर्वोपरि था।
आज गुरु का स्थान शिक्षक ने ले लिया है यह कहना पूरी तरह सही तो नहीं होगा, पर और कोई विकल्प भी नहीं है। आज शिक्षा की अवधारणा ही बदल गयी है और इसी कारण शिक्षक का स्थान और महत्त्व भी घट गया है। आज शिक्षा जीवन नहीं, जीवन का एक अंग मात्र है, वह अंग जो जीविकोपार्जन का प्रबंध करता है। शिक्षा का अर्थ बदलने के साथ ही सब कुछ बदल गया। अब वह शिक्षा उपयोगी है, जो आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे।
शिष्य अर्थ से संचालित है तो शिक्षक कैसे इससे वंचित रह सकते हैं। सो सबके लिए शिक्षा का अर्थ केवल अर्थ ही रह गया। इसका मूल अर्थ कहीं खो सा गया। लेकिन यह बदलाव केवल प्रयोग में था, इसीलिए शिक्षा की बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास चलता रहा। इसी क्रम में सीबीएसई ने सीसीई पैटर्न लागू किया जिसमें बालक के सम्पूर्ण विकास को ध्यान में रखकर पूरा पाठ्यक्रम बनाया गया।
इसमें शिक्षक की भूमिका फिर महत्वपूर्ण हो गयी। अब वह केवल कॉपी जांचकर पास-फेल करने वाला कर्मचारी नहीं रह गया। एक बार फिर उसे बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने और उसे निखारने का ज़िम्मा दिया गया। सभी शिक्षक अपने को इस भूमिका में फिट नहीं पाते सो कार्यभार बढ़ने से परेशान रहते हैं लेकिन अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें अपने को इस भूमिका के लिए तैयार करना होगा। उन्हें कबीर का वह कुम्हार बनना होगा जो शिष्य रूपी कुम्भ को आकार देता है।
शिक्षक-छात्र संबंध
यदि देखा जाए तो सीबीएसई की यह पहल जड़ों की ओर लौटने का एक प्रयास ही कहा जायेगा। सीसीई एक तरह से भारतीय गुरुकुल की अवधारणा का ही एक अंग लगती है। अंतर है तो केवल शिक्षक या गुरु के प्रति समर्पण भाव का। यह समर्पण न तो शिक्षार्थियों में है और न ही उनके अभिभावकों में। इसके लिए केवल इन दोनों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
दूसरों का हमारे प्रति समर्पण हमारी पूँजी है और इस पूँजी को कमाने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की ही है। जिन शिक्षण संस्थानों ने इसका प्रयास किया है उनके यहाँ अपने लोग अपने बच्चे छोड़ते हैं। यही कारण है कि इतने डे बोर्डिंग स्कूल और होस्टल्स चल रहे हैं।
इस आपसी विश्वास को और सुदृढ़ करना होगा। इस विश्वास को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी इतनी संस्थान की नहीं है जितनी शिक्षकों की है क्योंकि अंत में शिक्षक ही वह कड़ी होता है जो बालकों से सीधे जुड़ा होता है। ऐसे में सबसे उत्तम है कि वह स्वयं अपनी ज़िम्मेदारी तय करे। इस ज़िम्मेदारी में केवल योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं है, बल्कि उसका व्यक्तिगत आचरण भी है। अपने आचरण को आदर्श बनाकर ही वह छात्रों से आदर्श आचरण की अपेक्षा कर सकता है। झूठ बोलकर छुट्टी लेने वाला शिक्षक छात्रों से सत्य की अपेक्षा नहीं कर सकता।
शिक्षा का उद्देश्य अपने जीवन में उतारकर ही एक शिक्षक उस उद्देश्य की प्राप्ति कर पायेगा और तब शिक्षक-छात्र का यह संबंध सही मायनों में अपनी आदर्श स्थिति को पा लेगा। वह आदर्श स्थिति, जिससे शिक्षा का आरंभ हुआ, जो गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित थी। आदर्श शिक्षक-छात्र संबंध से प्राप्त शिक्षा ही बाकी शिक्षा का भी आधार बनती है।
आदर्श शिक्षक
जिस प्रकार घोड़ा भूखा मरने की हालत में भी मांस नहीं खा सकता, उसी प्रकार स्वस्थ व्यक्तित्व का स्वामी किसी भी परिस्थिति में अनैतिक कार्यों में लिप्त नहीं हो सकता। स्कूली शिक्षा के अलावा भी आज बच्चों के पास सीखने के लिए बहुत सी बातें हैं और वे सभी अच्छी नहीं हैं। आदर्श शिक्षक के छात्र इतने परिपक्व हो जाते हैं कि निर्णय ले सकें कि इस अनंत ब्रह्माण्ड में उन्हें क्या सीखना है और क्या नहीं। यह समझ ही व्यक्ति निर्माण है और इस समझ को विकसित करना हर शिक्षक की ज़िम्मेदारी।
इस ज़िम्मेदारी से भागने वाला व्यक्ति शिक्षक नहीं, केवल एक वेतनभोगी कर्मचारी है जिसके लिए शिक्षक दिवस के आयोजन का कोई औचित्य नहीं। अंग्रेज़ी की कहावत है, यदि आप राजा का सम्मान पाना चाहते हैं तो राजा की तरह व्यवहार कीजिये। इस सन्दर्भ में कह सकते हैं, कि यदि आप गुरु का सम्मान पाना चाहते हैं तो गुरु की तरह व्यवहार कीजिये।
आज माता-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले ही स्कूल में उसका रजिस्ट्रेशन करा देते हैं, स्कूल के अलावा छोटे-छोटे बच्चों को कोचिंग भेजा जाता है। जहाँ पहले माता-पिता पूरे साल में एक बार भी अध्यापक से नहीं मिलते थे, वहीं अब वे साल में 10 बार स्कूल जाकर उसकी पूरी रिपोर्ट लेते हैं। इस सबके अलावा प्रतिवर्ष शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिये नयी-नयी योजनायें आती हैं।
वास्तव में शिक्षा है क्या?
क्या बच्चों की स्कूली पढ़ाई ही शिक्षा है या इससे कुछ अधिक है? बच्चे जो घर में सीखते हैं, दोस्तों से सीखते हैं, अपने अनुभव से सीखते हैं, वह सब क्या है?
जब शिशु पैदा होता है तो उसके पास केवल प्रकृति प्रदत्त ज्ञान होता है, वह ज्ञान जो प्रकृति के हर प्राणी के पास होता है। जो बात उसे बाकी जीवों से अलग करती है, वह है सीखने की अपार क्षमता। इस क्षमता के कारण वह पैदा होने के बाद से प्रतिदिन कुछ नया सीखता है। इस सीखने का पहला चरण शारीरिक ज्ञान है। इसके अंतर्गत वह अपने शरीर और उसकी आवश्यकताओं जैसे शौच, भूख, प्यास, दर्द, नींद आदि से अवगत होता है। दूसरे चरण में वह भावनात्मक आवश्यकताओं को समझता है जैसे स्नेह, रिश्ते, स्पर्श आदि।
तीसरे चरण में सामाजिक आवश्यकताओं को जानता है और चौथा चरण स्वयं से साक्षात्कार का है। शैशव काल से लेकर मृत्युपर्यंत, इन चारों चरणों में व्यक्ति जो भी सीखता है वह शिक्षा है। चाणक्य हों या कबीर, प्लेटो हों या अरस्तु, नेहरु हों या महात्मा गाँधी, लगभग सभी विचारकों ने शिक्षा के क्षेत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया और इसकी बेहतरी के लिए प्रयास भी किया।
गुरु और शिक्षक
शिक्षा से ही फिर अन्य दो शब्दों को प्रादुर्भाव हुआ, शिक्षक और शिक्षार्थी। शिक्षा देने वाला शिक्षक और शिक्षा ग्रहण करने वाला शिक्षार्थी। शिक्षा के मानव जीवन में महत्त्व के कारण ही शिक्षक का स्थान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया। जिस प्रकार मानव सभ्यता का प्रारंभ भारत से हुआ उसी प्रकार शिक्षा पर चिंतन भी भारत से ही शुरू हुआ। गुरुकुल की अवधारणा इसका पहला चरण था। आदि काल में शिक्षा का क्षेत्र व्यापक था, पर उसका अधिकार सीमित था। यह अपने विकसित रूप में सबको उपलब्ध नहीं थी। चुनिन्दा जातियां और कुल ही इसके अधिकारी थे।
लेकिन शिक्षा का क्षेत्र व्यापक होने के कारण शिष्य को पाकशास्त्र, गायन, नृत्य, शास्त्र, वेद, नीति, अस्त्र-शस्त्र के अलावा लकड़ी काटना तक सिखाया जाता था, भले ही वह राजकुमार ही क्यों न हो। माता-पिता अपनी संतानों को गुरु के सुपुर्द कर देते थे और शिक्षा समाप्त होने के बाद ही वे अपने घर को प्रस्थान करते थे।
गुरुकुल में निवास के दौरान छात्रों किसी भी सूरत में परिवार से कोई संपर्क नहीं रहता था और वे पूर्णतया गुरु के ही संरक्षण में रहते थे। इसी कारण वे पूरी तरह गुरु निष्ठ होते थे और उस समय गुरु का आदर ईश्वर के समान ही था। गुरु भी अपने आचरण में इस सम्मान का पात्र बनने का पूरा प्रयास करते थे। उनके लिए शिष्य का हित ही सर्वोपरि था।
आज गुरु का स्थान शिक्षक ने ले लिया है यह कहना पूरी तरह सही तो नहीं होगा, पर और कोई विकल्प भी नहीं है। आज शिक्षा की अवधारणा ही बदल गयी है और इसी कारण शिक्षक का स्थान और महत्त्व भी घट गया है। आज शिक्षा जीवन नहीं, जीवन का एक अंग मात्र है, वह अंग जो जीविकोपार्जन का प्रबंध करता है। शिक्षा का अर्थ बदलने के साथ ही सब कुछ बदल गया। अब वह शिक्षा उपयोगी है, जो आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे।
शिष्य अर्थ से संचालित है तो शिक्षक कैसे इससे वंचित रह सकते हैं। सो सबके लिए शिक्षा का अर्थ केवल अर्थ ही रह गया। इसका मूल अर्थ कहीं खो सा गया। लेकिन यह बदलाव केवल प्रयोग में था, इसीलिए शिक्षा की बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास चलता रहा। इसी क्रम में सीबीएसई ने सीसीई पैटर्न लागू किया जिसमें बालक के सम्पूर्ण विकास को ध्यान में रखकर पूरा पाठ्यक्रम बनाया गया।
इसमें शिक्षक की भूमिका फिर महत्वपूर्ण हो गयी। अब वह केवल कॉपी जांचकर पास-फेल करने वाला कर्मचारी नहीं रह गया। एक बार फिर उसे बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने और उसे निखारने का ज़िम्मा दिया गया। सभी शिक्षक अपने को इस भूमिका में फिट नहीं पाते सो कार्यभार बढ़ने से परेशान रहते हैं लेकिन अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें अपने को इस भूमिका के लिए तैयार करना होगा। उन्हें कबीर का वह कुम्हार बनना होगा जो शिष्य रूपी कुम्भ को आकार देता है।
शिक्षक-छात्र संबंध
यदि देखा जाए तो सीबीएसई की यह पहल जड़ों की ओर लौटने का एक प्रयास ही कहा जायेगा। सीसीई एक तरह से भारतीय गुरुकुल की अवधारणा का ही एक अंग लगती है। अंतर है तो केवल शिक्षक या गुरु के प्रति समर्पण भाव का। यह समर्पण न तो शिक्षार्थियों में है और न ही उनके अभिभावकों में। इसके लिए केवल इन दोनों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
दूसरों का हमारे प्रति समर्पण हमारी पूँजी है और इस पूँजी को कमाने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की ही है। जिन शिक्षण संस्थानों ने इसका प्रयास किया है उनके यहाँ अपने लोग अपने बच्चे छोड़ते हैं। यही कारण है कि इतने डे बोर्डिंग स्कूल और होस्टल्स चल रहे हैं।
इस आपसी विश्वास को और सुदृढ़ करना होगा। इस विश्वास को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी इतनी संस्थान की नहीं है जितनी शिक्षकों की है क्योंकि अंत में शिक्षक ही वह कड़ी होता है जो बालकों से सीधे जुड़ा होता है। ऐसे में सबसे उत्तम है कि वह स्वयं अपनी ज़िम्मेदारी तय करे। इस ज़िम्मेदारी में केवल योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं है, बल्कि उसका व्यक्तिगत आचरण भी है। अपने आचरण को आदर्श बनाकर ही वह छात्रों से आदर्श आचरण की अपेक्षा कर सकता है। झूठ बोलकर छुट्टी लेने वाला शिक्षक छात्रों से सत्य की अपेक्षा नहीं कर सकता।
शिक्षा का उद्देश्य अपने जीवन में उतारकर ही एक शिक्षक उस उद्देश्य की प्राप्ति कर पायेगा और तब शिक्षक-छात्र का यह संबंध सही मायनों में अपनी आदर्श स्थिति को पा लेगा। वह आदर्श स्थिति, जिससे शिक्षा का आरंभ हुआ, जो गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित थी। आदर्श शिक्षक-छात्र संबंध से प्राप्त शिक्षा ही बाकी शिक्षा का भी आधार बनती है।
आदर्श शिक्षक
जिस प्रकार घोड़ा भूखा मरने की हालत में भी मांस नहीं खा सकता, उसी प्रकार स्वस्थ व्यक्तित्व का स्वामी किसी भी परिस्थिति में अनैतिक कार्यों में लिप्त नहीं हो सकता। स्कूली शिक्षा के अलावा भी आज बच्चों के पास सीखने के लिए बहुत सी बातें हैं और वे सभी अच्छी नहीं हैं। आदर्श शिक्षक के छात्र इतने परिपक्व हो जाते हैं कि निर्णय ले सकें कि इस अनंत ब्रह्माण्ड में उन्हें क्या सीखना है और क्या नहीं। यह समझ ही व्यक्ति निर्माण है और इस समझ को विकसित करना हर शिक्षक की ज़िम्मेदारी।
इस ज़िम्मेदारी से भागने वाला व्यक्ति शिक्षक नहीं, केवल एक वेतनभोगी कर्मचारी है जिसके लिए शिक्षक दिवस के आयोजन का कोई औचित्य नहीं। अंग्रेज़ी की कहावत है, यदि आप राजा का सम्मान पाना चाहते हैं तो राजा की तरह व्यवहार कीजिये। इस सन्दर्भ में कह सकते हैं, कि यदि आप गुरु का सम्मान पाना चाहते हैं तो गुरु की तरह व्यवहार कीजिये।
सुपर-३०
सुपर-३०
प्रतिवर्ष यह इंस्टीयूट गरीब परिवारों के 30 प्रतिभावान बच्चों का चयन करती है और फिर उन्हें बिना शुल्क के आईआईटी की तैयारी करवाती है। इंस्टीयूट इन बच्चों के खाने और रहने का इंतजाम भी बिना कोई शुल्क करती है। इंस्टीयूट केवल 30 बच्चों का चयन करती है और इसी आधार पर इसे सुपर 30 नाम दिया गया था।
सुपर 30 इंस्टीट्यूट की शुरुआत सन 2003 में हुई थी। इस वर्ष सुपर 30 के 30 में से 18 विद्यार्थी आईआईटी में सफल हुए थे। 2004 में यह संख्या 22 और सन 2005 में यह 26 हो गई।
श्री आनन्द कुमार इसके जन्मदाता एवं कर्ता-धर्ता है। आनंद कुमार रामानुज स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स नामक संस्थान का भी संचालन करते हैं। सुपर-30 को इस गणित संस्थान से होने वाली आमदनी से चलाया जाता है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल पूर्व जापानी ब्यूटी क्वीन और अभिनेत्री नोरिका फूजिवारा ने सुपर 30 इंस्टीट्यूट पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी।
नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विवि में 2014 से होगी पढ़ाई
नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विवि में 2014 से होगी पढ़ाई
पटना:
आज भले ही ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय शिक्षा और ज्ञान का
केंद्र माने जाते हैं, लेकिन कई सदी पहले बिहार में नालंदा विश्विद्यालय
पूरी दुनिया में शिक्षा और ज्ञान का केंद्र था। पांचवीं सदी में एशिया के
विभिन्न इलाकों के छात्र इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते थे, लेकिन
बाद में हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया। अब 21वीं सदी में एकबार फिर इस
प्राचीन अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की गरिमा को बहाल करने की योजना है।
योजना के मुताबिक साल 2014 से इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू होने की संभावना है। प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर के नजदीक एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने की योजना बनाई गई है, जहां दुनिया भर के छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर ज्ञान अर्जित कर सकेंगे। इस नए विश्वविद्यालय में न केवल प्राचीन विषयों की, बल्कि आधुनिक विषयों की भी पढ़ाई होगी।
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गोपा सबरवाल ने कहा कि शैक्षणिक सत्र सितंबर 2014 से शुरू हो जएगा। इस सत्र में 40 विद्यार्थी प्रवेश पा सकेंगे। इसके लिए दिसंबर में प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2014-15 में दो स्कूलों, इतिहास और पर्यावरण अध्ययन खुल जाएगा। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का चाहरदीवारी का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। विश्वविद्यालय के भवन निर्माण का कार्य 2021 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है।
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि हमारा काम नए विश्वविद्यालय की स्थापना करना और पढ़ाई शुरू करना है, जिससे यह स्थान एक बार फिर शिक्षा का केंद्र बन सके। यह एक शुरुआत है। उन्होंने कहा कि पुराने विश्वविद्यालय को ख्याति प्राप्त करने में 200 साल का समय लगा था, लेकिन वर्तमान समय में दो दशक तो लगेंगे ही।
गौरतलब है कि प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय की योजना की घोषणा साल 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाइलैंड ने की थी और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। विश्वविद्यालय के आसपास के करीब 200 गांवों के भी विकास करने की योजना बनाई गई है। एक अधिकारी ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक इस विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना के लिए करीब 1000 मिलियन डॉलर के खर्च होने की संभावना है।
प्रारंभ में पूर्व नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की परिकल्पना पूर्व राष्ट्रपति डा़ ए पी़ जे अब्दुल कलाम ने की थी। कलाम उस समय जिले में एक रेल कोच कारखाने का शिलान्यास करने आए थे। नीतीश कुमार उस समय केंद्र सरकारी में रेल मंत्री थे और कलाम ने उनसे नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की चर्चा की थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने इसके स्थापना की पहल की।
गौरतलब है कि पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया, जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है।
योजना के मुताबिक साल 2014 से इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू होने की संभावना है। प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर के नजदीक एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने की योजना बनाई गई है, जहां दुनिया भर के छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर ज्ञान अर्जित कर सकेंगे। इस नए विश्वविद्यालय में न केवल प्राचीन विषयों की, बल्कि आधुनिक विषयों की भी पढ़ाई होगी।
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गोपा सबरवाल ने कहा कि शैक्षणिक सत्र सितंबर 2014 से शुरू हो जएगा। इस सत्र में 40 विद्यार्थी प्रवेश पा सकेंगे। इसके लिए दिसंबर में प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2014-15 में दो स्कूलों, इतिहास और पर्यावरण अध्ययन खुल जाएगा। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का चाहरदीवारी का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। विश्वविद्यालय के भवन निर्माण का कार्य 2021 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है।
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि हमारा काम नए विश्वविद्यालय की स्थापना करना और पढ़ाई शुरू करना है, जिससे यह स्थान एक बार फिर शिक्षा का केंद्र बन सके। यह एक शुरुआत है। उन्होंने कहा कि पुराने विश्वविद्यालय को ख्याति प्राप्त करने में 200 साल का समय लगा था, लेकिन वर्तमान समय में दो दशक तो लगेंगे ही।
गौरतलब है कि प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय की योजना की घोषणा साल 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाइलैंड ने की थी और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। विश्वविद्यालय के आसपास के करीब 200 गांवों के भी विकास करने की योजना बनाई गई है। एक अधिकारी ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक इस विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना के लिए करीब 1000 मिलियन डॉलर के खर्च होने की संभावना है।
प्रारंभ में पूर्व नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की परिकल्पना पूर्व राष्ट्रपति डा़ ए पी़ जे अब्दुल कलाम ने की थी। कलाम उस समय जिले में एक रेल कोच कारखाने का शिलान्यास करने आए थे। नीतीश कुमार उस समय केंद्र सरकारी में रेल मंत्री थे और कलाम ने उनसे नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की चर्चा की थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने इसके स्थापना की पहल की।
गौरतलब है कि पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया, जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है।
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Thursday, June 27, 2013
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Tuesday, May 14, 2013
Indian Education System
Indian Education System: What needs to change?
Education has been a problem in our
country and lack of it has been blamed for all sorts of evil for
hundreds of years. Even Rabindranath Tagore wrote lengthy articles about
how Indian education system needs to change. Funny thing is that from
the colonial times, few things have changed. We have established IITs,
IIMs, law schools and other institutions of excellence; students now
routinely score 90% marks so that even students with 90+ percentage find
it difficult to get into the colleges of their choice; but we do more
of the same old stuff.
Rote learning still plagues our system,
students study only to score marks in exams, and sometimes to crack
exams like IIT JEE, AIIMS or CLAT. The colonial masters introduced
education systems in India to create clerks and civil servants, and we
have not deviated much from that pattern till today. If once the
youngsters prepared en masse for civil services and bank officers exams,
they now prepare to become engineers. If there are a few centres of
educational excellence, for each of those there are thousands of
mediocre and terrible schools, colleges and now even universities that
do not meet even minimum standards. If things have changed a little bit
somewhere, elsewhere things have sunk into further inertia, corruption
and lack of ambition.
Creating a few more schools or allowing
hundreds of colleges and private universities to mushroom is not going
to solve the crisis of education in India. And a crisis it is – we are
in a country where people are spending their parent’s life savings and
borrowed money on education – and even then not getting standard
education, and struggling to find employment of their choice. In this
country, millions of students are victim of an unrealistic, pointless,
mindless rat race. The mind numbing competition and rote learning do not
only crush the creativity and originality of millions of Indian
students every year, it also drives brilliant students to commit
suicide.
We also live in a country where the
people see education as the means of climbing the social and economic
ladder. If the education system is failing – then it is certainly not
due to lack of demand for good education, or because a market for
education does not exist.
सरस्वती देवी
सरस्वती साहित्य, संगीत, कला की देवी :
1.सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं । वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।
2.मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है । बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है । मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है । कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है । उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है ।
3.शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है । बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय । इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है । सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
1.सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं । वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।
2.मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है । बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है । मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है । कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है । उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है ।
3.शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है । बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय । इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है । सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
सरस्वती वंदना :
" या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥ "
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